औरंगाबाद:(कार्तिक छठ मेला २३)वनवास पूरा करने के बाद भगवान श्री राम ने माता सिता संग किया था छठ व्रत,जानिए व्रत के नियम और विधि
संदीप कुमार की स्पेशल रिपोर्ट
Magadh Express – लोक आस्था का महापर्व छठ 17 नवंबर 2023 से शुरू हो चुका है। आज यानी 18 नवंबर (शनिवार) को छठ पूजा का दूसरा दिन है। आज खरना है। आज के दिन व्रती सूर्योदय से सूर्यास्त तक निर्जला व्रत रखते हैं। उसके बाद शाम की पूजा करके प्रसाद ग्रहण करते हैं। फिर पूरे परिवार के सदस्य उस प्रसाद को खाते हैं। खरना के दिन उपवास रखकर तन और मन को शुद्ध और मजबूत बनाया जाता है, ताकि अगले 36 घंटे का निर्जला व्रत रखा जा सके। 36 घंटे तक निर्जला उपवास के कारण यह व्रत कठिन व्रतों में से एक है।
आइए जानते हैं खरना के नियम और पूजा विधि
खरना क्या है?
छठ के दूसरे दिन को खरना कहा जाता है। खरना कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को होता है। इस दिन व्रती को सुबह से शाम तक निर्जला व्रत रखना होता है। फिर शाम में पूजा-पाठ करके खीर और पूड़ी या खीर और रोटी खाते हैं। यह खीर मिट्टी के नए चूल्हे पर गुड़ और चावल से बनाया जाता है। इस बार खरना के दिन सूर्योदय का समय सुबह 06:46 बजे का रहेगा और सूर्यास्त शाम 05:26 बजे होगा।
कौन हैं छठी मैया
सूर्यदेव तो इस प्रकृति के ऊर्जा स्रोत हैं। छठी मैया देवी कात्यायनी हैं। यह सूर्यदेव की बहन हैं। नवरात्र में भी हम देवी कात्यायनी की पूजा षष्ठी को करते हैं, मतलत नवरात्र के छठे दिन सनातन हिंदू धर्म में जन्म के छठे दिन भी देवी कात्यायनी की ही पूजा होती है। इन्हें संतान प्राप्ति के लिए भी प्रसन्न किया जाता है। संतान के चिरंजीवी, स्वस्थ और अच्छे जीवन के लिए देवी कात्यायनी को प्रसन्न किया जाता है।छठी मैया यही हैं। इसलिए यह समझना मुश्किल नहीं. शेष, छठ में सूर्यदेव की पूजा तो घाट पर होती है, खरना पूजा पहले छठी मैया के लिए ही होती है।
खरना के दिन किसकी होती है पूजा
खरना के दिन छठ मैया की पूजा की जाती है. इसके अगले दिन सूर्यास्त के समय व्रती लोग नदी और घाटों पर पहुंच जाते हैं।जहां डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।इस दौरान सूर्यदेव को जल और दूध से अर्घ्य देते है। साथ ही इस दिन व्रती महिलाएं छठी मैया के गीत भी गाती हैं।लोकआस्था के महान पर्व छठ के दूसरे दिन खरना व्रतियों के साथ श्रद्धालुओं ने खरना का प्रसाद ग्रहण किया। इसी के साथ छठ व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला उपवास प्रारंभ हो गया। छठ पर्व का जश्न चारों ओर देखते ही बन रहा है। खरना के दिन शाम को गुड़ का खीर खाने का बड़ा महत्व है। माना जाता है कि छठ पूजा व्रत त्रेता युग से किया जा रहा है। इस व्रत के पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं। छठ कथा के अनुसार कहा जाता है कि सबसे पहले त्रेतायुग में इस व्रत को सीता मैया ने किया था। जब राम, लक्ष्मण और सीता 14 वर्ष का वनवास पूरा कर लौटे थे तब उन्होंने छठी मैया का व्रत किया था। ऐसे ही लोककथा के अनुसार कहा जाता है कि जब पांडव अपना सारा राजपाठ जुए में हार गए थे तब द्रौपदी ने छठ का व्रत किया था। तब उनकी मनोकामना पूरी हुई थी। तभी से ये व्रत करने की परंपरा चली रही है।
रविवार को अस्तचलगामी भगवान भास्कर को प्रथम अर्घ्य दिया जाएगा। वहीं सोमवार को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही छठ पर्व पूरा होगा। छठ के दूसरे दिन खरना के दौरान व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रहने के बाद शाम को मिट्टी के बने नए चूल्हे पर आम की लकड़ी की आंच से गाय के दूध में गुड़ डालकर खीर बनाईं। साथ ही पांच तरह के पकवान तैयार कर छठी माई को भोग लगाया गया। इसके बाद इसे भोग लगाकर व्रती प्रसाद के रूप में ग्रहण की। नवीनगर शहर के विभिन्नचौक चौराहों, छठ घाट तथा पूजा समितियों छठ व्रतियों के घरों में छठ मईया के गीत गुंज रहे हैं। कांच ही बांस के बहंगी, बहंगी चलकत जाए.., मारबो रे सुगवा धनुष से.. सहित कई गीतों से क्षेत्र में भक्ति रस घुल रहे हैं।