स्पेशल खबर :क्या है सेंगोल आइये समझते हैं आसान भाषा में
गौतम उपाध्याय
मगध एक्सप्रेस:- इन दिनों देश में एक मुद्दा काफी चर्चा के केंद्र में है, पक्ष और विपक्ष एक दुसरे पर नव निर्मित संसद भवन के उद्घाटन को लेकर तकरार कर रहे हैं,इस बीच देश के कॉग्रेस समेत बीस पार्टियों ने उद्घाटन समारोह में जाने से मना कर दिया है।28 मई को नये संसद भवन देश को समर्पित कर दिया जाएगा। प्रेस कॉन्फ्रेंस कर भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने बताया कि इसी दिन ऐतिहासिक राजदंड सेंगोल को संसद भवन में स्थापित किया जाएगा।
अब आइए समझते हैं सेंगोल है क्या?
गोह प्रखण्ड के चर्चित लेखक और डडवां मध्य विद्यालय के प्रभारी प्रधानाध्यापक रविनंदन बताते हैं कि आम लोगों के बीच सेंगोल जैसा शब्द कौतूहल से ओतप्रोत है। आखिर ये सेंगोल है क्या,जो नये संसद भवन के उद्घाटन के अवसर पर इसकी विशेष चर्चा हो रही है। दरअसल,सेंगोल संस्कृत भाषा के संकु शब्द से बना है, जिसका अर्थ शंख होता है -शंख का प्रयोग सनातनधर्मावलम्बी पूजा,पाठ में बड़ी श्रद्धा और आस्था से करते हैं। घरों, मंदिरों में कथा और आरती के समय शंख बजाकर पूजा और भक्ति का इजहार करते हैं।तमिल भाषा में सेंगोल ‘सेम्मई’ शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ; धर्म, सच्चाई और निष्ठा से है।हिंदी में इसका अर्थ राजदंड है। यहां सेंगोल का अर्थ वैभव, संपदा, संपन्नता तथा निष्पक्ष और न्यायपूर्ण शासन से है।लोकभाषा में शगुन ही समझिए, जिसका अर्थ शुभ संकेत, आर्शीवाद तथा सुख शांति से है।
सर्व विदित है कि सदियों से दक्षिण भारत संस्कृत भाषा और संस्कृति को अपने दामन में समेटे हुए है। जिस तरह से हर संस्कृति का अपना एक प्रतीक चिन्ह हुआ करता है उसी तरह से सेंगोल को निष्पक्ष और न्यायपूर्ण शासन का प्रतीक माना जाता है।दक्षिण भारत में 8वीं सदी में चोल साम्राज्य की स्थापना 848ईस्वी.को राजा विजयालय ने किया था।848ईस्वी. से871ईस्वी.तक शासन किया था। विजयालय ने ही दक्षिण भारत में महान चोल साम्राज्य की नींव रखी थी।इसकी राजधानी उरैयूर जो तमिलनाडु के तिरूचिरापल्ली का क्षेत्र है।चोल वंश का सबसे शक्तिशाली राजा राजराज चोल (985-1014)को माना जाता है, जिन्हें ‘महान राजराज’भी कहते हैं।इसके बाद इसके पुत्र राजेन्द्र प्रथम (1012-1044)भी शक्तिशाली राजा के रूप में प्रसिद्धि पायी।चोल राजा जब अपने उत्तराधिकारी को सत्ता हस्तांतरण करते थे तो प्रतीक के तौर पर सेंगोल का इस्तेमाल करते थे। मतलब,जब सत्ता हस्तांतरित होती थी,जो एक निर्वतमान राजा सत्तासीन राजा को सेंगोल सौंपता था।इसे सत्ता की शक्ति का केंद्र माना जाता था।सेंगोल के माध्यम से शुभकामनाएं दी जाती थी -सुख, समृद्धि, शांति, धर्म, न्याय, सच्चाई, तरक्की और निष्ठा की।
आजाद भारत में इसका अपना अलग महत्व है जो 75वर्षों से गुमनामी का दंश झेलता रहा। भारत के अमृत काल तथा नये संसद भवन के उद्घाटन के अवसर पर सेंगोल को पहचान मिली।14अगस्त 1947को भारत के अन्तिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने पंडित जवाहरलाल नेहरू से पूछा कि सत्ता का हस्तांतरण कैसे किया जाए जो यादगार का क्षण साबित हो?पंडित जवाहरलाल नेहरू ने पूर्व गवर्नर जनरल सी राजगोपालाचारी से विचार -विमर्श किया,जो भारत के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को बारिकी से समझते थे। उन्होंने ही सेंगोल के बारे में राय दी।बस, क्या था जवाहरलाल नेहरू को राय पसंद आ गयी।सी राजगोपालाचारी को इसकी जिम्मेवारी सौंपी गई। इसने तमिलनाडु के सबसे पुराने मठ थिरूवावदुथुराई के 20वें गुरुमहा महासन्निधानम श्रीलाश्री अंबलवाण देसिगर स्वामी से सम्पर्क किया।इसने सेंगोल बनवाने की जिम्मेवारी ले ली।ये प्रसिद्ध जौहरी वुम्मिडी को सेंगोल बनाने को कहा। आखिरकार,सोने का सेंगोल तैयार किया गया, जिसके शीर्ष पर नंदी को विराजमान किया गया।नंदी शिव के वाहन तथा औतार है।नंदी को शक्ति, सम्पन्नता और कर्मठता का प्रतीक माना जाता है।मठ की ओर से एक दल विशेष विमान से सेंगोल को दिल्ली भेजा गया ताकि लार्ड माउंटबेटन तक पहुंच जाए।
14अगस्त1947की रात 11बजकर 45मिनट पर सेंगोल को लार्ड माउंटबेटन को सौंपा गया।इसके बाद माउंटबेटन ने इसे तमिलनाडु से आये श्री लाश्रीअंबलवाण देसिगर स्वामी के डिप्टी श्रीकुमारस्वामी तम्बिरन को सौंप दिया। तमिल परम्परा के अनुसार थेवरम के भजन गाये ग्रे।इस अवसर पर उस्ताद टीएन राजरथिनम ने नादस्वरम बजाया।श्री कुमार स्वामी थम्बिरन अर्द्ध रात्रि में ही जवाहरलाल नेहरू के माथे पर तिलक करके उन्हें सेंगोल सौंप दिया था,जो सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक बना।इस तरह से सेंगोल भारतीय परम्परा का प्रतीक है,जिसका इतिहास 1947में हुए सत्ता के हस्तांतरण से जुड़ा हुआ है।1960 से इस सेंगोल को प्रयागराज के संग्रहालय में रखा गया है।अब जब 28मई ,2023को नये संसद भवन का उद्घाटन भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के कर कमलों द्वारा भारत के अमृत काल में उद्घाटन होगा तो सेंगोल को भी नये संसद भवन में स्थान मिलेगा। भारत के गृहमंत्री अमित शाह ने कहा है कि इसे संसद भवन में स्पीकर के कुर्सी के बगल में स्थापित किया जाएगा।इस तरह से हमारी संस्कृति धरोहर को राजदंड का सम्मान हम भारतीयों के आकांक्षा और भावनाओं को प्रतिबिंबित करता है।