औरंगाबाद :ऊँ ऐही सूर्यदेव सहस्त्रांशो तेजो राशि जगत्पते, अनुकम्पय मां भक्त्या गृहणार्ध्य दिवाकर:,देव के सूर्यकुंड तालाब पर अस्ताचलगामी सूर्य और उदयीमान सूर्य को लाखो श्रद्धालुओं ने दिया अर्घ्य

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मगध एक्सप्रेस :-ऊँ ऐही सूर्यदेव सहस्त्रांशो तेजो राशि जगत्पते। अनुकम्पय मां भक्त्या गृहणार्ध्य दिवाकर:।अर्थात -हे सहस्त्रांशो! हे तेजो राशे! हे जगत्पते! मुझ पर अनुकंपा करें। मेरे द्वारा श्रद्धा-भक्तिपूर्वक दिए गए इस अर्घ्य को स्वीकार कीजिए, आपको बारंबार शीश नवाता हूं।आम जनमानस में एक आम जिज्ञासा यह रही है कि भगवान सूर्य की उपासना के लोक महापर्व छठ में सूर्य के साथ जिन छठी मैया की अथाह शक्तियों के गीत गाए जाते हैं, वे कौन हैं। ज्यादातर लोग इन्हें शास्त्र की नहीं, लोक मानस की उपज मानते हैं। लेकिन हमारे पुराणों में यत्र-तत्र इन देवी के संकेत जरूर खोजे जा सकते हैं।

पौराणिक कथा के अनुसार सूर्य और षष्ठी अथवा छठी का संबंध भाई और बहन का है। षष्ठी एक मातृका शक्ति हैं जिनकी पहली पूजा स्वयं सूर्य ने की थी। ‘मार्कण्डेय पुराण’ के अनुसार प्रकृति ने अपनी अथाह शक्तियों को कई अंशों में विभाजित कर रखा है। प्रकृति के छठे अंश को ‘देवसेना’ कहा गया है। प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इनका एक नाम षष्ठी भी है। देवसेना या षष्ठी श्रेष्ठ मातृका और समस्त लोकों के बालक-बालिकाओं की रक्षिका हैं। इनका एक नाम कात्यायनी भी है जिनकी पूजा नवरात्रि की षष्ठी तिथि को होती रही है।

पुराणों में निःसंतान राजा प्रियंवद द्वारा इन्हीं देवी षष्ठी का व्रत करने की कथा है। छठी षष्ठी का अपभ्रंश हो सकता है। आज भी छठव्रती छठी मैया से संतानों के लंबे जीवन, आरोग्य और सुख-समृद्धि का वरदान मांगते हैं। शिशु के जन्म के छह दिनों बाद इन्हीं षष्ठी या छठी देवी की पूजा का आयोजन होता है जिसे बोलचाल की भाषा में छठिहार कहते हैं। छठी मैया की एक आध्यात्मिक पृष्ठभूमि भी हो सकती है। अध्यात्म कहता है कि सूर्य के सात घोड़ों पर सवार की सात किरणों का मानव जीवन पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है। सूर्य की छठी किरण को आरोग्य और भक्ति का मार्ग प्रशस्त करने वाला माना गया है। संभव है कि सूर्य की इस छठी किरण का प्रवेश अध्यात्म से लोकजीवन में छठी मैया के रूप में हुआ हो।

ऐतिहासिक ,पौराणिक एवं धार्मिक दृष्टिकोण से अति महत्वपूर्ण सौर तीर्थ स्थल देव में लगने वाले चार दिवसीय छठ पूजा के तीसरे दिन देव स्थित पवित्र सूर्यकुंड तालाब में भगवान् सूर्य को अर्घ्य अर्पित करने के लिए दोपहर बाद से हजारो नहीं बल्कि लाखो श्रद्धालुओं और व्रतियों का हुजूम उमड़ पड़ा। भगवान् सूर्य की जय ,छठी मैया की जय के जयघोष के साथ भारी भीड़ पुरे दिन पुरे देव में चलायमान रही। सूर्यकुंड तालाब के चारो ओर छह घंटा के लिए मानो भीड़ थम सा गया हो। कहते है देव में भगवान् सूर्य तीन रूपों में विराजमान है ,ऐसे में उदयकाल में ब्रह्म ,मध्यान काल में महेश्वर और अस्त काल में भगवान् विष्णु के रूप में सृष्टि का पालन करते है। सूर्य षष्टी व्रत के दिन अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य पड़ता है ,जबकि अंतिम दिन उदयीमान सूर्य को अर्घ्य के बाद ही व्रती पारण करते है अर्थात व्रत समाप्त करते है। सायंकालीन आर्घ्य के दौरान देव के चारो ओर मानो तिल रखने भर की जगह नहीं रही ,सभी गली ,चौक चौराहो पर व्रती और श्रद्धालुओं से पटा रहा। वहीँ सूर्यकुंड तालाब जाने वाली सभी मार्ग पर धीरे धीरे श्रद्धालुओं और व्रतियों की भीड़ रेंगती रही। लाखो श्रद्धालुओं और व्रतियों ने अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर अपनी मनोकामना पूर्ण होने का आशीर्वाद प्राप्त किया।

वहीँ सूर्य नगरी देव स्थित पवित्र सूर्यकुन्ड में लाखों व्रतियों ने उदयीमान सुर्य को आज अपना दुसरा अध्र्य अर्पित किया। छोटे से इस कुन्ड के चारों तरफ मानो श्रद्धालुओं का हुजूम उमड पडा था। कुछ इस हद तक कि मानों तील रखने भर की जगह भी खाली नहीं बचा हो। हर कोई इस फिराक में था कि वह जल्द से जल्द कुन्ड तक पहूँचे और धार्मिक दृश्टीकोण से अति महत्वपूर्ण इस कुन्ड में डूबकी लगाकर भगवान भाष्कर को अपना अध्र्य अर्पित कर सके। गौरतलब है कि देव में छठ पूजा का अनुश्ठान करने का एक अलग महत्व है। ऐसी मान्यता है कि भगवान सूर्य यहाँ साक्षात विद्यमान हैं और जो कोई भी सच्चे मन से यहाँ आ कर छठी मईया की पूजा अराधना करता है, भगवान उनकी मनोकामना अवश्य पूरी करते हैं। गौरतलब है कि पुरे विश्व में देव ही एक ऐसा स्थान है जहां छठ व्रती उदयाचल , मध्याचल एवं अस्ताचलगामी सूर्य को पवित्र सुर्यकुण्ड मे तीनो पहर अपना अर्घ्य अर्पण करते हैं । 

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