औरंगाबाद :अभूतपूर्व स्थापत्य कला, शिल्प एवं कलात्मक भव्यता का अद्भूत उदहारण है देव का सूर्य मंदिर ,जहाँ सात घंटे सोते है भगवान्
मगध एक्सप्रेस :-बिहार के औरंगाबाद जिले के देव स्थित ऐतिहासिक, धार्मिक, पौराणिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक एवं पर्यटन के दृष्टिकोण से विश्व प्रसिद्व त्रेतायुगीन सूर्यमंदिर अपनी कलात्मक, भव्यता के लिए सर्वविदित और प्रख्यात होने के साथ ही सदियों से देशी -विदेशी पर्यटकों, श्रद्वालुओं एवं छठ-व्रतियों की अटूट आस्था का केन्द्र है। इस मंदिर को दुनिया का इकलौता पष्चिमाभिमुख सूर्यमंदिर होने का गौरव हासिल है।
देव का त्रेतायुगीन सूर्यमंदिर जिसे अभूतपूर्व स्थापत्य कला, शिल्प एवं कलात्मक भव्यता का अद्भूत नमूना कहा जाता है। यही वजह है कि आम जनमानस में इस मंदिर को लेकर यह किवंदति प्रसिद्व है कि किसी साधारण शिल्पी ने नहीं बल्कि इसका निर्माण खूद देव शिल्पी भगवान विष्वकर्मा ने अपने हाथों से किया है। काले और भूरे पत्थरों की अति सुंदर कृति जिस तरह ओडिसा के पूरी के जगन्नाथ मंदिर और कोणार्क के सूर्यमंदिर का है, ठीक उसी से मिलता-जुलता शिल्प इस मंदिर का भी है।भगवान् सूर्य के बारह रूपों में से एक एग्याराह्वा रूप त्रिमूर्ति का इस मंदिर में विराजमान है .
कहा जाता है कि यह मंदिर अति प्राचीन है जिसे इलापुत्र राजा ऐल ने त्रेतायुग के 12 लाख 16 हजार वर्ष बीत जाने के बाद निर्माण आरंभ कराया था। ऐसे, में मंदिर की अति प्राचीन होने से इंकार नहीं किया जा सकता और स्थानीय श्रद्धालु भी इस बात को खुले तौर पर स्वीकार करते हैं।
देव के इस मंदिर में 7 रथों से सूर्य की उत्कीर्ण प्रस्तर मूर्तियां अपने तीनों रूपोंः उदयाचल-प्रातः सूर्य, मध्याचल-मध्य सूर्य और अस्ताचल सूर्य-अस्त सूर्य के रूप में विद्यमान हैं। पूरी दुनिया में देव का ही मंदिर एकमात्र ऐसा सूर्यमंदिर है, जो पूर्वाभिमुख न होकर पष्चिमाभिमुख है। इस बारे में भी किवंदतियां प्रसिद्व हैःकहा जाता है इस मंदिर की मूर्तियाँ तोड़ने के लिए औरंगजेब ने भी हमला किया था ,बाहर के सभी मूर्तियों को खंडित करने के बाद जब वो भगवान् के गर्भ गृह में जाने लगा तो लोगो ने भगवान् के प्रति आस्था व्यक्त करते हुए औरंगजेब से कहा कि मूर्तियों को न तोड़े , औरंगजेब द्वारा यह कहा गया कि यदि यह पुर्वविमुख सूर्य मंदिर कल सुबह तक पश्चिमाविमुख हो जाएगा तो नहीं तोडा जाएगा . सुबह जब लोगो की आँखे खुली तो मंदिर पुर्वाविमुख न होकर पश्चिमाविमुख हो गया जिसके बाद औरंगजेब ने मूर्तियाँ नहीं तोड़ी और यहाँ से वापस चला गया .
देव सूर्य मंदिर में सप्ताह के प्रत्येक रविवार और मंगलवार को भारतवर्ष के कोने कोने से आये हजारो श्रद्धालु भगवान् का दर्शन पूजन कर मनोवांछित फल को प्राप्त करते है जबकि चैती एवं कार्तिक छठ पूजा के दौरान यहाँ व्रत करने वालो की संख्या लाखो में हुआ करती है . भगवान भास्कर का यह मंदिर सदियों से लोगों को मनोवांछित फल देनेवाला पवित्र धर्मस्थल रहा है। यूँ तो सालों भर देष के विभिन्न जगहों से यहां पधारकर मनौतियां मांगते हैं और सूर्य देव द्वारा इसकी पूर्ति होने पर अर्ध्य देने आते हैं। लेकिन कार्तिक व चैती छठ के दौरान यहां दर्षन-पूजन की अपनी एक विषिष्ट धार्मिक महता है।
देव सूर्य मंदिर में विराजमान भगवान सूर्य आम आदमी की तरह रात को सात घंटे सोते हैं। मंदिर के गर्भ गृह स्थित अपने शयनकक्ष में आसन पर आराम करते हैं। पुजारी शाम को सात बजे भगवान की आरती दिखा दो घंटे को जनता के लिए छोड़ते हैं। जैसे ही रात नौ बजता है पुजारी शयनकक्ष का पट बंद कर देते हैं और भगवान सो जाते हैं। सुबह चार बजते ही पट खोला दिया जाता है। मंदिर परिसर के अलावा भगवान के गर्भ गृह स्थित शयनकक्ष को जल से धोया जाता है। भगवान के सेवक रुपी पुजारी भगवान को घंटी बजाकर जगाते और शुद्ध जल से स्नान कराते हैं। उनके पुराने कपड़े उतारकर नया वस्त्र धारण कराया जाता हैं। ललाट पर चंदन, चांदी का मुकुट और जनेऊ पहनाया जाता है। गले में माला दिया जाता है। पूरे दिन भगवान प्रसन्न रहें इसके लिए भविष्य पुराण से आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ सुनाया जाता है।
पांच बजे आरती के बाद भगवान श्रद्धालुओं के लिए तैयार होकर अपने आसन पर विराजमान हो जाते हैं और पूरे दिन श्रद्धा से पहुंचने वाले भक्तों को दर्शन देते हैं। जैसे ही शाम छह बजता है पूजा बंद कर दी जाती है। फिर पुजारी जी की वही डयूटी। छह से सात बजे तक भगवान को स्नान के बाद विधिवत पूजा पाठ और आरती। आरती के बाद नौ बजे तक पट खुला रहता है। दिन में भगवान भूखा न रहें इसके लिए आरती के समय भोग लगाया जाता है। पेड़ा, मिश्री का छोटा दाना, बादाम दाना, किसमिस एवं पंचमेवा का भोग लगाया जाता है। फूल में कमल, कनैल, लाल कबीर एवं गेंदा का चढ़ाया जाता है। भगवान के सेवक मुख्य पुजारी सच्चिदानंद पाठक बताते हैं कि यहा ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश रुपी एकादश भगवान सूर्य को लाल चीज प्रिय है।