औरंगाबाद:गजना धाम में चैत पूर्णिमा पर दर्शन पूजन को लेकर उमड़ी श्रद्धालुओ की भिड़

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संदीप कुमार

Magadh Express:औरंगाबाद जिले के नवीनगर प्रखंड के टंडवा थाना क्षेत्र के करबार नदी किनारे स्थित शक्तिपीठ गजना धाम में गुरूवार को चैत्र पूर्णिमा के अवसर पर मां गजनेश्वरी के दर्शन पूजन करने के लिए श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ पड़ा। मां का दर्शन व प्रसाद चढ़ाने के लिए श्रद्धालुओं को घंटों लाइन में खड़े होकर इंतजार भी करना पड़ा। इस वर्ष लगभग 10 हजार से भी अधिक भक्तों का माता के दरबार में पहुंचकर हाजिरी लगाने की बात कही जा रही है। वहीं न्यास समिति सदस्यों के द्वारा मंदिर परिसर की साफ-सफाई कर लोगों के सुविधायुक्त बनाया और धाम में आने वाले श्रद्धालुओं की सुरक्षा व्यवस्था एवं कड़ाही प्रसाद चढ़ाने वालों को पेयजल आपूर्ति व्यवस्था का इंतजाम किया।

माँ गजनेश्वरी मंदिर में तो सालों भर श्रद्धालु पहुंचकर माँ को प्रसाद चढ़ाते हैं लेकिन नवरात्र आरंभ होने से लेकर चैत्र पूर्णिमा तक भक्तों का हुजूम उमड़ता है। इनदिनों मां का दर्शन-पूजन विशेष फलदायी होता है। वहीं मनोकामना पूर्ति के लिए लोग मंदिर में अखंड दीप भी जलाते हैं। इससे माता गजनेश्वरी हर किसी की मुराद पूरी करते हैं। पूर्णिमा के दौरान यहां मेला भी लगता है जिसमें फूल प्रसाद के अलावे विभिन्न तरह की दुकानें सजती है। स्थानीय लोगों की माने तो न्यास समिति सदस्यों के द्वारा ही धाम में सुरक्षा व्यवस्था की जाती है। पुलिस प्रशासन का इसमें कोई सहयोग नहीं होता है।

मंदिर में नहीं है कोई प्रतिमा

शक्तिपीठ मंदिर में किसी प्रकार की कोई प्रतिमा नहीं है। यहां निरंकार रूप में एक चबूतरे पर मां शक्ति की पूजा होती है। महंत अवध बिहारी दास ने बताया कि इस धाम से संबंधित वर्णन वामन पुराण, मार्कंडेय पुराण, देवी भागवत पुराण आदि ग्रंथों में मिलता है। उन्होंने बताया कि इस मंदिर की एक बहुत ही आश्चर्यजनक विशेषता यह भी है कि यहां मिट्टी की कड़ाही में ढाई सेर आटे की पूरियां मात्र 250 ग्राम शुद्ध देसी घी में बड़े आराम से छन जाती है। जो श्रद्धालुओं के द्वारा प्रसाद के रूप में माँ को चढ़ाया जाता है। प्राचीन इतिहास: कहा जाता है कि प्राचीन काल में यह क्षेत्र आदि मानवों का निवास स्थान था। पोलडीह गांव में कई पुराने अवशेष आज भी उपलब्ध है।

प्राचीनकालीन की देवी-देवताओं की कई प्रतिमाएं है। यहां खरवारों की कुलदेवी चेड़ीमाई की पूजा होती है। कहा जाता है कि चेरों के आगमन के पूर्व लगभग 800 साल पहले जपला खरवार राजाओं की राजधानी थी। आशुतोष भट्टाचार्य ने अपनी कृति ”बंगाला, लोक साहित्य और संस्कृति” में सूर्य का पर्व गाजन की चर्चा की है। गाजन प्राचीन काल से चला आ रहा एक पर्व है। जो बंगाल में लोकप्रिय शैव संप्रदाय से जुड़ा है। गाजन पर्व बंगाल में चैत्र महीने में मनाया जाता है। यह वैशाख माह में भी मनाया जाता है।

इतिहास बताता है कि बारहवीं शताब्दी के मध्य तक यह क्षेत्र बंगाल के शासक रामपाल सेन के अधीनस्थ था। इसी के बाद इस क्षेत्र का शासन गढ़वाल राजा के हाथ में चला गया। महंत अवध बिहारी दास कहते हैं कि गजना माता को वन देवी भी कहा जाता है। समाजसेवी शिव शंकर प्रसाद गुप्ता जी ने बताया कि 55 साल पहले यहां खपड़ा का मंदिर था जहां मिट्टी के हाथी घोड़े चढ़ाए जाते थे। पहले यहां बकरे की बलि दी जाती थी। बाद में स्थानीय ग्रामीणों के कहने पर पंडित मुखदेव दास ने बलि प्रथा को बंद कराया।

प्रतिदिन होता है गजनामाता का श्रृंगार

मंदिर के महंथ अवध बिहारी दास ने बताया कि यहां प्रतिदिन सुबह को माँ को जगाया जाता है। जगाने के बाद स्नान करा माँ का श्रृंगार किया जाता है। उन्होने कहा कि यहां जो लोग भी दर्शन करने आते हैं उनकी मनोकामनाएं मां पूरी करती हैं। महंत ने बताया कि चैत माह में यहां मां का विशेष पूजन किया जाता है। गजनाधाम बिहार-झारखंड के श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है। नवरात्र में यहां श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है। भक्तों की हर मनोकामना मां पूरा करती हैं। गजानन माता मंदिर लाखों श्रद्धालुओं के श्रद्धा का प्रतीक है। यह स्थल शक्ति पीठ के रुप में विख्यात है।

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