औरंगाबाद:श्रद्धा को समर्पित कविता प्रेम के पैतिस टुकड़े,कवि आशुतोष मिश्रा और गौतम उपाध्याय
-:प्रेम के 35 टुकड़े:-
🖊️ आशुतोष/गौतम
जो जिस्म के भूखे होते है,पैसो के भूखे होते है।
जब तन मन सब भर जाता है,कुछ और नजर न आता है।
यह प्रेम नही पेशा है,उठ रहा प्यार से भरोसा है।
जिसने तुमको प्यार दिया,उसी को तुमने मार दिया।
वो तो बुद्धी की मारी थी जो घर-बार छोड़कर आई थी।
श्रद्धा का श्रद्धा पूर्ण हुआ,जिस दिन उसका खून हुआ
गांव-देहात,शहर-बाजार -कल-कारखानों मे भी आफताब लोग घुमते है।
श्रदा जैसी भोली भाली लड़कियों पर अपनी गंदी निगाह रखते हैं।
मौका मिल जाए उन्हे तो पीछे पड़ जाते हैं।
बाहर से भोले-भाले इंसान बनकर,अंदर-ही-अंदर षडयंत्र रचते है।
35 टुकडे देखकर सहम उठा है मन,ऐसी घिनौनी कृत्य से डरता है मन
पश्चिमी संस्कृति के विचार अपनाने वालों
डरो अपने आप से,समाज से,विश्वास से
मिलाओं अपनी आवाज निर्भया (श्रद्धा) की आवाज से ।
-: Justice for Srandha:-