औरंगाबाद :चुनाव नजदीक आते ही नेताओं को याद आने लगी अरीबोरवा और गिधवा नाला – उपेंद्र यादव

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संजीव कुमार –

मगध एक्सप्रेस :-जैसे ही चुनाव की आहट नेताओं की कानों तक पहुंची वैसी उनके पाँव भोले भाले ग्रामीणों के बिच सरकने लगा।अब ग्रामीणों की समस्याएं भी उन्हे नजर आने लगी।चुनाव जितने के बाद नेता ऐसे गायब हो जाते हैँ जैसे खाने के दौरान थाली से खाना।वर्षों से हजारों ग्रामीणों की समस्या बनी अरीबोरवा और गिधवा नाला की याद अब नेताओं की जुबान पर आने लगी।उक्त बातें दक्षिणी उमगा पंचायत के पूर्व मुखिया सह समाजसेवी उपेंद्र यादव ने कही।उन्होंने कहा कि, इन दो महत्वपूर्ण जगहों पर बाँध बनवाने को लेकर कई वर्षों से वरीय पदाधिकारियों से लेकर सांसद विधायक से आग्रह किया गया है।कई नेताओं ने तो इसके लिए दृढ संकल्प भी ले लिया था।लेकिन अब सपना हो गया।मानो लोग सोये हुए सपना देखे थे।चुनाव नजदीक आती है तो बड़े – बड़े नेता अपने नुमाइंदों के साथ ग्रामीणों के बिच जाते हैँ।उनसे समस्या पूछकर एक कोरे कागज पर अंकित कर लेते हैँ और आश्वासन देते हैँ कि,बहुत जल्द उनकी समस्याओं को ख़त्म कर दिया जायेगा।लेकिन,इसके बाद भोले भाले ग्रामीण उनके लिए भूले बिसरे गीत बनकर रह जाते हैँ।

उन्होंने बताया कि,अरीबोरवा और गिधवा नाला पर बाँध बन जाए से दर्जनों गाँव के लोगों को सिंचाई की व्यवस्था उपलब्ध हो जाती।इस वर्ष बारिश का न होना और उत्तरी कोयल नहर मे पानी नहीं छोड़े जाने से किसानों की स्थिति दयनीय हो चुकी है।किसानों के सामने भुखमरी की स्थिति पैदा हो गयी है।ये हकीकत है कि, इससे सरकार से लेकर प्रशासनिक पदाधिकारी भी अवगत हैँ।कई बार लोग इसकी जाँच और निरीक्षण करने आये लेकिन उसके बाद ना तो इसपर बात होती है और ना ही कोई उपाय।ग्रामीण बड़े नेताओं के बड़े बड़े वादों मे डूबे हुए है।खैर उन्हे इन गरीब ग्रामीणों की समस्याओं से क्या लेना देना।उनकी फाइल पर तो सभी योजनाएं क्रियान्वित हो चुकी है।उनकी सैलेरी तो महीने के निर्धारित तिथि पर आ ही जायेगी।लेकिन,भला इन गरीबों के भूखे पेट को कौन जानना चाहता है।2024 और 2025 मे लोकसभा और विधानसभा का चुनाव होने वाला है।ऐसे मे कई बड़े पार्टी के नेता फिर से आरोबोरवा और गिधवा नाला पर बाँध बनवाने की राग अलापने लगे हैँ।उनकी यह राग आम ग्रामीणों के लिए कोरा कागज है।नेता सिर्फ लोगों को बेवकूफ बनाने मे व्यस्त है।

आज गाँवों बुनियादी सुविधाओं का आभाव है।सरकार के योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है।सरकार सिर्फ घोषणा करने मे व्यस्त है।जब ग्रामीण योजनाओं को लेकर स्थानीय जनप्रतिनिधियों के पास जाते हैँ तो उनके पास कोई जवाब नहीं होता है।जब उनकी समस्याओं को लेकर सम्बन्धित पदाधिकारियों से शिकायत की जाती है तो सिर्फ आश्वासन ही दिया जाता है।ऐसे मे आम जनता की समस्या कैसे दूर होगा।सरकार की योजनाएं राजनीति का शिकार हो जाता है।इस राजनितिक शिकार मे स्थानीय जन प्रतिनिधियों के अधिकार को ख़त्म कर दिया गया है।स्थानीय जनप्रतिनिधि सरकार और पदाधिकारियों के आश्वासन मे इंतजार करते रहते हैँ।जिससे आम जनता का भरोसा टूटने लगा है।हमे अगर गरीबी दूर करना है तो गरीबों के दर्द को समझना होगा।उनकी समस्याओं से अवगत होकर उसे अविलम्ब दूर करना होगा।अन्यथा सरकार और आम जनता के बिच एक ऐसी खाई बन जायेगी जिसे आने वाले समय मे पाटना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन हो जायेगा।

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