औरंगाबाद : देवकुंड महोत्सव को लेकर 26 अप्रैल को होगी महाबैठक , दो जिलों के लोग होंगे शामिल ,देवकुंड की ऐतिहासिक गरिमा और संस्कृति को बढ़ावा देना होगा महोत्सव का कार्य ,राजनीति नहीं -महंथ
मगध एक्सप्रेस :- औरंगाबाद अरवल जिले के सिमा पर अवस्थित च्यवन आश्रम देवकुंड धाम बिहार के बाबा नगरी देवघर की तरह प्रसिद्ध है। महर्षि च्यवन की तपोभूमि देवकुंड के मठ परिसर में कुण्ड की अग्नि पांच सौ वषरे से अधिक समय से प्रज्ज्वलित है। अरवल और औरंगाबाद की सीमा पर स्थित देवकुंड वह धरती है जहां भगवान श्री राम गया में अपने पितरों को पिण्डदान करने से पूर्व ही भगवान शिव की स्थापना कर पूजा अर्चना की थी। बाद में महर्षि च्यवन ने उसी स्थल को अपनी तपोभूमि बनाया और वषरे तपस्या की। पांच सौ वषरे पूर्व बाबा बालपुरी ने च्यवन ऋषि के उसी आश्रम में साधना की और हवन करने के बाद जिन्दा समाधी ले ली। तब से उस कुण्ड की अग्नि आज तक प्रज्ज्वलित है। ऐसा भी नहीं कि उस कुण्ड में प्रतिदिन हवन होता है। कुण्ड की अग्नि पांच सौ वषरे से कभी नहीं बुझी। ऊपर से देखने पर कुण्ड राख का ढेर लगता हैं किन्तु राख में थोड़ा सा भी हाथ डालने पर उसके नीचे अग्नि का एहसास होता है। कुण्ड में धूप डाल कर पास रखे छड़ से जैसे ही राख को उड़ेला जाता है उसकी अग्नि धूप को पकड़ लेती है और कुण्ड से धूंआ निकलना शुरू हो जाता है। कुण्ड के बगल में ही महर्षि च्यवन की प्रतिमा स्थापित है और बगल में बाबा बालदेव का वह आसन रखा है जिस पर बैठकर उन्होंने साधना की थी। कुण्ड के सामने बाबा बालपुरी की समधी स्थल पर छोटे-छोटे दस शिवलिंग स्थापित हैं।
बाबा दुधेश्वरनाथ के नाम से प्रसिद्ध भगवान शिव का मंदिर कुण्ड से कुछ दूरी पर सहस्त्रधारी (तालाब) के किनारे हैं जहां पहले भगवान श्री राम और बाद में च्यवन ऋषि ने पूजा अर्चना की थी। देवकुंड मठ के महंथ श्री कन्हैयानन्द पूरी जी महाराज बताते हैं कि महर्षि चवन जब यहां तपस्या में लीन थे तो उस समय वहां के राजा शरमाती और उनकी पुत्री सुकन्या जंगल में भ्रमण के लिए आए थे। सुकन्या एक टीले के बीच चमकती रोशनी देखकर उसमें कुश डाल दी। दरअसल वह तपस्या में लीन महर्षि च्यवन थे जिनकी आंखे सुकन्या के कुश डाले जाने के कारण फूट गई। महर्षि के श्राप से बचने के लिए राजा ने सुकन्या से महर्षि चवन की शादी कर दी। वृ महर्षि च्यवन से नवयौवन सुकन्या की विवाह के बाद अश्विनी कुमारों ने यज्ञ कर महर्षि च्यवन को उसी सहस्त्रधारा में स्नान कराया और विशेष रसायन तथा सोमरस का पान कराया जिसके बाद महर्षि च्यवन को यौवन प्राप्त हुआ वही रसायन बाद में च्यवनप्राश के नाम से प्रसि हुआ। आज भी सावन के महीने में लोग दूर -दूर से भगवान शिव के दर्शन करने आते हैं और हवन कुण्ड में धूप अर्पित करते हैं। सहस्त्रधारा में बड़े पैमाने पर छठ पर्व आयोजित किया जाता है।
देवकुंड महोत्सव को च्यवनाश्रम क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के उत्सव रूप में मनाना है। यह मानवता के साथ सभी वर्गों, सभी धर्मों, सभी पंथों और सभी संप्रदायों को एक साथ आने तथा देवकुंड धाम के साथ औरंगाबाद व अरवल जिले के सीमावर्ती क्षेत्रों में स्थित ऐतिहासिक स्थानों का सर्वश्रेष्ठ सांस्कृतिक परंपराओं से रू-ब-रू होने का सुनहरा अवसर है।
(कन्हैयानंदपुरी जी, देवकुंड मठाधीश)
देवकुंड धाम की विशेषता
बिहार राज्य के औरंगाबाद व अरवल जिले के सीमावर्ती क्षेत्र में स्थित देवकुंड धाम का विख्यात बाबा दूधेश्वरनाथ महादेव मंदिर ना सिर्फ औरंगाबाद व अरवल जिले का, बल्कि बिहार के प्रमुख तीर्थ स्थानों में गिना जाता है। यहां नीलम पत्थर से निर्मित भगवान शिव का शिवलिंग स्थापित है। जो पांच हजार वर्ष से भी अधिक पुराना है। मान्यताओं के अनुसार यह स्थल कई हजार वर्ष प्राचीन है क्योंकि भगवान श्रीराम ने कर्मनाशा नदी पार कर यहां पहुंच च्यवन ऋषि से मुलाकात कर बाबा दुग्धेश्वर नाथ शिव लिंग की स्थापना कर पूजा की थी। (आनंद रामायण, यात्रा सर्ग)
देवकुंड मठ के तत्वावधान में आयोजित श्रावणमास व महाशिवरात्रि के दिन काफी भीड़ होती है। जहां लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। वैसे तो साल के बारह महीनों में 12 से अधिक त्यौहारों पर यहां छोटे-बड़े मेलों का आयोजन किया जाता है। साथ ही तरह-तरह के यहां सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।देवकुंड के स्थानीय नागरिको का कहना है कि कुछ बाहरी लोग जबरदस्ती महोत्सव मनाने के नाम पर देवकुंड के 2-4 ग्रामीण और आसपास के लोगों को जो तोड़ने का कार्य कर रहे हैं वो सही नहीं , सभी बुद्धिजीवी को पता है महोत्सव के नाम पर जिले में क्या खेला चलता है। महोत्सव मनाने से देवकुंड अचानक सुदामा पुरी (श्रीकृष्ण के मित्र का घर) में तब्दील नहीं हो जाएगा । देवकुंड जिला के अंतिम छोर पर स्थित है साथ प्रखंड और अनुमंडल से भी काफी दूर है। देवकुंड का सीधा जुड़ाव जिला मुख्यालय से नहीं है इसलिए यह अपने विकास से कोसों दूर है। लेकिन विगत कुछ वर्षों में ग्रामीण व क्षेत्रीय जनसहभागिता और महंत कन्हैयानंद पुरी के नेतृत्व में यह स्थल अपने विकास के पथ पर गतिमान है, जिसका नतीजा आने वाले महज़ कुछ वर्षों में दिखाई देगा।देवकुंड में देवकुंड महोत्सव किसी संगठन से जुड़े बाहरी व्यक्ति या किसी बाहरी एनजीओ के तत्वावधान में नहीं बल्कि देवकुंड मठ के तत्वावधान में आयोजित की जाएगी। कब मनाई जाएगी इसके लिए 28 अप्रैल 2023 को देवकुंड मठ में बैठक कर विचार-विमर्श किया जाएगा। बैठक में यहां के लोग (ग्रामीण एवं औरंगाबाद और अरवल जिले के सीमावर्ती क्षेत्र में रह रहे क्षेत्रवासी उपस्थित रहेंगे जो महोत्सव की रुपरेखा तय करेंगे। सभी शिवभक्त यहां सादर आमंत्रित हैं और हां भाड़े पर के लोग दूर रहें….