औरंगाबाद :[देव]निजी स्कूली वाहनों में जानवरों की तरह ढोये जा रहे बच्चे ,नियमो की उड़ रही धज्जियाँ ,मामला श्रेयस पब्लिक स्कूल का

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मगध एक्सप्रेस :-औरंगाबाद जिले के देव नगर पंचायत में स्कूली बच्चों को वैन से जानवरों की तरह ठूंस कर ढोया जा रहा है। कार्रवाई के नाम पर कुछ भी नजर नहीं आते हैं। देव प्रखंड क्षेत्र में अवैध स्कूली वाहनों पर शिंकजा कसने के दावे किए जाते है , हालांकि जमीनी हकीकत तो कुछ और ही है। देव प्रखंड में शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में अवैध तरीके से स्कूलों में लगी वैन से ही बच्चों को लाने और ले जाने का काम किया जा रहा है। इन वैन में निर्धारित संख्या से अधिक बच्चे ठूंस-ठूंस कर भरे जाते हैं और फिर उन्हें घर से स्कूल और स्कूल से घर तक छोड़ा जाता है।देव प्रखंड के नगर पंचायत देव सहित केताकी ,बालूगंज ,चट्टी बजार, बेढ़नी ,में निजी विद्यायलो की भरमार है ,जहां बच्चो को छोटे छोटे पशुओं की तरह एक एक वाहन में 14 से लेकर 16 और 18 की संख्या में बच्चो को भरकर विद्यालय लाया जा रहा है तथा बच्चो को पुनः उनके घर तक पहुंचाया जा रहा है ।

लाइव टेस्ट में देव नगर पंचायत के दीवान बाग रोड स्थित श्रेयस पब्लिक स्कूल में बच्चो को ले जा रही छोटी वाहन इको की जांच की गई तो इस छोटे वाहन में बच्चो की संख्या 14 रही जबकि उसी वाहन में एक शिक्षिका और एक चालक मिलाकर 16 बैठे हुए थे।निजी स्कूल वाहनों की मनमानी के कारण छोटे छोटे नौनिहालों की जान खतरे में है ,वहीं अभिभावक अपने कमाई की मोटी रकम उन विद्यालयों को सौप कर निश्चिंत है जबकि विद्यालय प्रबंधन उनके जेब पर डाका डालने के साथ छोटे बच्चो की जिंदगियां दाव पर लगाए बैठे है ।जानकारी के अनुसार देव प्रखंड के शिक्षा विभाग के कर्मी कुंभकर्णी निंद्रा में सोए बैठे है , विद्यालयों की कभी जांच नही होती ,वहीं सड़को पर निजी विद्यालयों के वाहन बिना मानक के अवैध रूप से परिचालन कर रही है ।

वाहन प्राइवेट में दर्ज, स्कूलों में दौड़ा रहे चालक,बिना व्यावसायिक पंजीकरण नंबर,ढोये जाते है क्षमता से अधिक बच्चे

निजी स्कूलों में जमकर मनमानी की जा रही है । स्कूल का स्टेंडर्ड बनाने के लिए बिना फिटनेस के वाहनों को चलाया जा रहा है. स्कूल वाहनों के प्रति जिम्मेदारों का रवैया ढीला है.शहर के कई स्कूलों के वाहनों में बच्चे तो होते हैं, लेकिन वाहन किस स्कूल का है इसका जिक्र वाहन पर नहीं होता है. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट आदेश दिया हुआ है कि वाहन पर स्कूल का नाम व फोन नंबर जरूर होना चाहिए. कई प्राइवेट स्कूलों के वाहनों में क्षमता से अधिक बच्चों को भरकर ले जाया जाता है. अभिभावक भी यह सब कुछ देखकर मौन हैं, क्योंकि स्कूल वाहन चालक को मना किया तो उनके बच्चे स्कूल कैसे जायेंगे. यह सोचकर वह भी चुप्पी साध लेते हैं, लेकिन कभी हादसा हो गया तो उसका जिम्मेदार कौन होगा. यदि स्कूल वाहन पर नाम नंबर लिखा हो तो कोई हादसा होने पर कम से कम स्कूल में फोन कर सूचित तो किया जा सके.

इस मामले में डीपीओ सह बीइओ रवि रौशन ने कहा कि निजी विद्यालयों की जांच समय समय से विभागीय स्तर से कराई जाती है । मामला संज्ञान में आने पर कारवाई भी होती है ।निजी विद्यालय अगर बच्चो को इस तरह से अगर परिवहन सुविधा दे रहे है तो यह गलत है ,मामले की जांच कराई जाएगी ।यदि इस संबंध में कोई लिखित आवेदन प्राप्त होगा तो विद्यालयों की जांच तथा इनके वाहनों की परिवहन नियम के अनुसार जांच कराई जाएगी और दोषी पाए जाने पर कार्यवाई भी की जाएगी ।

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