Aurangabad :दो दिवसीय सोन नद महोत्सव का हुआ शानदार आगाज

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संदीप कुमार

मगध एक्सप्रेस :-औरंगाबाद जिले के नवीनगर प्रखंड के बडेम सुर्य राघव मन्दिर के प्रांगण में कला संस्कृति युवा विभाग जिला प्रशासन के तत्वधान में भव्य दो दिवसीय सोन नद महोत्सव का शानदार आगाज हुआ। महाेत्सव की शुरुअात धूमधाम से की गर्इ। जहाँ वैदिक मंत्रोचार के साथ भगवान सुर्य राघव की पूजा अर्चना से किया गया । जिसके बाद कार्यक्रम का आयोजन किया गया। महोत्सव का उद्घाटन दिप प्रज्ज्वलित कर और फीता काटकर किया गया। जिसका विधिवत उद्घाटन औरंगाबाद के सदर एसडीओ संतन कुमार, एसडीपीओ संजय कुमार पाण्डेय, जवाहर लाल नेहरू कॉलेज डेहरी के प्राचार्य डॉ विजय कुमार सिंह, प्रखंड विकास पदाधिकारी अरुण सिंह, सूर्य राघव मंदिर न्यास समिति के अध्यक्ष संजीव सिंह, न्यास समिति के संरक्षक सह उप प्रमुख लव कुमार सिंह एवं अन्य गणमान्य लोगों द्वारा संयुक्त रूप से किया गया।

उद्घाटन के पश्चात सभी आगंतुक अतिथियों का स्वागत हरित पौधा, अंग वस्त्र एवं मोमेंटो देकर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने सोन नद के महत्व पर प्रकाश डाला और बताया गया कि यह नदी पांच राज्यों से होकर बिहार में पटना के समीप गंगा नदी में मिलता है।संबोधन के दौरान एसडीएम संतन कुमार ने कहा महोत्सव का उद्देश्य लोगो में जागरूकता का प्रयास करना है।नदियों को बचाने और इसे प्रदूषण मुक्त करना चाहिए। उन्होंने कहा कि नदियों को प्रदूषित नहीं करें। कार्यक्रम को सम्बोधित करते वक्ताओ ने कहा कि सोन नदी का उल्लेख रामायण आदि पुराणो में आता है। गंगा नदी की सहायक नदियों में सोन का प्रमुख स्थान है। यह सोन बहुत गुणकारी माना गया है। इसका पौराणिक महत्त्व है। कहा जाता है कि सोन का पानी अनेक प्रकार से गुणकारी है। रूचिकर, संतापहारी, हितकर, जठराग्निवर्धक, बलदायक, क्षीण अंगों के लिए पुष्टिप्रद, मधुर, कांतिप्रद और बलवर्धक है। पर्व-त्योहारों के अवसर पर सोन में स्नान को प्राथमिकता दी जाती है। इसे हिरण्यवाहु भी कहा गया है। अर्थात सोने के कण को अपने साथ बहाने वाला नद। तीन हजार साल से भी पहले प्रागैतिहासिक-पुरातिहासिक काल में भी इस सहायक नदियों का जल प्राप्त कर निरंतर बहता रहा था। सोन का प्राचीन नाम शोण या शोणभद्र है।

नौवीं सदी के संस्कृत साहित्यकार राजशेखर ने गंगा समेत अन्‍य को नदी की संज्ञा दी, लेकिन ब्रह्मपुत्र की तरह सोन को नद ही कहा है। शोणलौहित्योनदौ। शोणो हिरण्यवाहः स्यात्। इसकी शोभा का बखान करते हुए सातवीं सदी के महान साहित्यकार सोन तटवासी बाणभट्ट कहते हैं- वरुण के हार जैसा चंद्रपर्वत से झरते हुए अमृत निर्झर की तरह, बिंध्य पर्वत से बहते हुए चंद्रकांतमणि के समान, दंडकारण्‍य के कर्पूर वृक्ष से बहते हुए कर्पूरी प्रवाह की भांति, दिशाओं के लावण्य रसवाले सोते के सदृष, आकाशलक्ष्मी के शयन के लिए गढ़े हुए स्फटिक शिलापट्ट की नाई, स्वच्छ शिविर और स्वादिष्ट जल से पूर्ण भगवान पितामह ब्रह्मा की संतान हिरण्याहु महानद को लोग शोण भी कहते हैं। सोन नदी भारत के मध्य भाग में बहने वाली एक नदी है। इसे सोनभद्र शिला के नाम से भी जाना जाता है। यमुना के बाद यह गंगा नदी की दक्षिणी उपनदियों में सबसे बड़ी है। यह मध्य प्रदेश के अनूपपुर ज़िले में अमरकंटक के पास उत्पन्न होती है, जो विंध्याचल पहाड़ियों में नर्मदा नदी के स्रोतस्थल से पूर्व में स्थित है। यह उत्तर प्रदेश और झारखंड राज्यों से गुज़रकर बिहार के पटना ज़िले में गंगा नदी में विलय हो जाती है।

उद्घाटन के बाद कार्यक्रम की शुरुआत स्वागत गीत से की गयी। वही विद्यालय के छात्राओं द्वारा स्वागत गान किस तरह करू नमन आपकी स्वागतम स्वागतम प्रस्तूत किया गया। वहीं मंच का संचालन राजेश कुमार सिंह द्वारा किया गया। वही महोत्सव में सुरक्षा के दृष्टिकोण कार्यक्रम स्थल सहित बाजार एवं अन्य चौराहों पर पर्याप्त संख्या में में सुरक्षा बल के जवान तैनात थे। इस दौरान बडेम ओपी थानाध्यक्ष सिमरन राज,एनटीपीसी खैरा थानाध्यक्ष पप्पू कुमार राकेश, पुनपुन महोत्सव के सचिव राजेश अग्रवाल,अध्यक्ष रामजन्म सिंह, बईओ राज नारायण राय,रेफरल अस्पताल चिकित्सा पदाधिकारी प्रमोद कुमार भारती,मुखिया प्रतिनिधि भंटा सिंह,पिन्टू,प्रो सुनील बोस, धनंजय सिंह, चुन्नू सिंह सहित बड़ी संख्या में जिला एवं प्रखंड के पदाधिकारीगण ,गणमान्य नागरिक एवं दर्शक मौजूद थे।

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