Aurangabad:दीपावली में जलाएं मिट्टी के दीपक, स्पेशल रिपोर्ट

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धीरज पाण्डेय 
Magadh Express:-रौशनी के महापर्व दीपावली पर हर जगह प्रकाश की किरणे तो बिखर रही है लेकिन इस रौशनी के संवाहक कुम्हारों की जिन्दगी में अँधेरा है . प्रस्तुत है चिराग तले अँधेरे की कहावत को चरितार्थ करती यह खास रिपोर्ट.


ये है चाक चलाकर जिंदगी जीनेवाले कूम्हार परिवार के लोग अपने हुनरमंद हाथो की कलाकारी से ये मिटटी में जान डालते हुए रौशनी के प्रतीक दीए से लेकर तमाम तरह की मिटटी की चीजे तो बना लेते है लेकिन इनकी जिंदगी में झाँकने की हम और आप कोई कोशिश नहीं करते इनके साथतो माटी कहे कुम्हार से तू क्या रुंधे मोहे एक दिन ऐसा आएगा मै रुन्धुंगा तोहे वाली बात पुरी तरह फिट बैठ रही है।

आज के युग में लोगो पर आधुनिकता इस कदर हावी है की लोग अपनी संस्कृति और पौराणिक परम्पराओ को भूलते हुए चाइनीज युग की तरफ बढ़ रहे है , ऐसे में चाक चलाकर दुसरो के घरो में रौशनी फैलाने का काम करने वाले कुम्हारो के जीवन में रौशनी की कमी होती जा रही है , जबकि लोग देशी वस्तुओ को छोड़कर विदेशी वस्तुओ को ज्यादा तरजीह दे रहे है। जिसके कारण चाक चलकर अपना पेट पालने वाले लोगो को जीवकोपार्जन के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ रही है।

ऐसे में आप इन पुरानी परम्पराओ को यादगार रखते हुए दीपावली के दिन अपने घरो में भले ही चाइनीज बल्ब जलाये मगर मिटटी से बने दिए भी जरूर जलाये ,ताकि इस व्यवसाय पर आश्रित लोगो का जीवन यापन भी बेहतर ढंग से हो सके। जरा आप अपने आप सोचिये की दीपावली के अलावे भी आप यदि घर में पूजा – पाठ या व्रत त्यौहार करते है तो आप भगवान या किसी देवी देवता को बल्ब जलाकर आरती क्यों नहीं दिखाते , क्यों नहीं थाली में चाइनीज बल्ब जलाकर भगवान की स्तुति करते है , जाहिर सी बात है सभी जानते है की मिटटी से बने दिए शुद्ध होते है और इनका धार्मिक कार्यो में कुछ अलग ही विशेषता है , तो दीपावली जैसे महान पर्व में आप इसे कैसे भूलते जा रहे है ।

आप सभी पाठको से अनुरोध है की इस पर विचार करे और अपने घरो में मिटटी से बने दिए जरूर जलाये।

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