औरंगाबाद :शिक्षा मनुष्य के भीतर अच्छे विचारों का निर्माण करती है,मनुष्य के जीवन का मार्ग प्रशस्त करती है-महंथ कन्हैयानन्द पुरी
मगध एक्सप्रेस :-अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद देवकुंड इकाई द्वारा सिटीएसी के तत्वाधान में तीन ग्रुप में आयोजित च्यवनाश्रम प्रतिभा खोज परीक्षा में अव्वल आए प्रतिभागियों में सभी ग्रुपों में प्रथम स्थान पर क्रमशः प्रिंस कुमार, आकाश कुमार, जूही कुमारी, दूसरे स्थान पर अमन कुमार, आयुष कुमार, सूरज कुमार एवं तीसरे स्थान पर हर्ष कुमार, कंचन कुमारी, शार्श्वत वत्स जबकि टॉप 10 में अमन पटेल, लवकुश, विकास, कुन्दन, कृति, सत्यप्रकाश, अभय कुमार, क्षितिज कुमार को चयनित कर राष्ट्रीय युवा दिवस के उपलक्ष्य में कार्यक्रम आयोजित कर पुरस्कृत किया गया।
कार्यक्रम की शुरुआत देवकुंड महंत कन्हैयानन्द पुरी ने दीप प्रज्वलित कर किया। तत्पश्चात उपस्थित अतिथियों ने बारी बारी से मां भारती, स्वामी विवेकानंद व मां सरस्वती के तैल चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर श्रदा सुमन अर्पित किया। उपस्थित वक्ताओं ने स्वामी जी के उद्देश्य एवं आदर्शो पर चलने के लिए लोगों को प्रेरित किया।जिसके बाद देवकुंड पब्लिक स्कूल के छात्र छात्राओं संस्कृतिक कार्यक्रम में स्वामी विवेकानंद जी के एक से बढ़ कर एक और मनमोहक झांकियो के साथ देश भक्ति से गीतों के माध्यम से राष्ट्रवाद की लोगों में चेतना भर दिया। इस दौरान अभाविप जिला संयोजक अभय कुशवाहा, प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य गौरव मिश्रा, कुणाल रक्सेल, शिक्षक कमलेश सिंह, शिक्षक धनेश्वर राम, राकेश रंजन, शिक्षक पन्नालाल सिंह, शिक्षक मुकेश झा, अभाविप सदस्य मनीष जयसवाल, प्रिंस कुमार, अतुल सिंह, लवकुश कुमार, सुधा वर्मा, अर्पणा सिंह, विभा कुमारी, अमरजीत कुमार, संजय कुमार, कुन्दन कुमार, मृत्युंजय, जितेंद्र सहित अभाविप सभी सदस्य उपस्थित रहें।
देवकुंड महंत कन्हैयानन्द पुरी ने कहा कि शिक्षा मनुष्य के भीतर अच्छे विचारों का निर्माण करती है,मनुष्य के जीवन का मार्ग प्रशस्त करती है। बेहतर समाज के निर्माण में सुशिक्षित नागरिक की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। इंसानों में सोचने की शक्ति होती है इसलिए वो सभी प्राणियों में श्रेष्ठ है लेकिन अशिक्षित मनुष्य की सोच पशु के समान होती है। वो सही गलत का फैसला नहीं कर पाता। इसलिए शिक्षा मानव जीवन के लिए ज़रूरी है, जो उसे ज्ञानी बनाती है।
भारतीय संस्कृति में प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में चार लक्ष्य माने गए हैं जिन्हें पुरुषार्थ की संज्ञा दी जाती है – धर्म , अर्थ , काम , मोक्ष। इन चारों में से मोक्ष सबसे अधिक पवित्र एवं महत्वपूर्ण माना जाता है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का चरम उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति होती है। अतः शिक्षा ही मोक्ष की प्राप्ति का एकमात्र साधन माना गया है।लेकिन शिक्षा का उद्देश्य मात्र शिक्षित होना नहीं होता, बल्कि शिक्षा के कई अन्य मकसद होते हैं, जिसे कई शिक्षाके विद्वानों ने अलग-अलग तरीके से परिभाषित किया है।महंथ ने कहा कि स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि “मनुष्य की अंतर्निहित पूर्णता की अभिव्यक्ति ही शिक्षा है।”