औरंगाबाद :बिहार सरकार का तुगलकी फरमान, शिक्षकों की छुट्टियां रद्द करना शिक्षकों के अधिकारों,उनकी आस्था और अस्मिता पर हमला है-छठु सिंह
मगध एक्सप्रेस :-बिहार राज्य प्रारंभिक शिक्षक संघ औरंगाबाद के वरीय जिला उपाध्यक्ष छठु सिंह, ने एक विज्ञप्ति जारी करते हुए कहा है कि बिहार सरकार एवं शिक्षा विभाग के पदाधिकारियों द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के नाम पर नए अपर मुख्य सचिव के के पाठक साहब के आने के बाद लगातार रोज नए नए आदेश जारी किया जा रहा है।जिससे बिहार की शिक्षा एवं शिक्षकों को दिन रात मानसिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ रहा है। पदाधिकारियों द्वारा न तो शिक्षा के व्यवहारिक पहलुओं पर मंथन किया जाता है और न ही विभाग द्वारा विद्यालयों को उपलब्ध संसाधनों की विवेचना की जाती है, ताबड़ तोड़ अर्थहीन आदेश पारित किए जा रहे हैं उसका शिक्षा के क्षेत्र में क्या असर हो रहा है इस पर गंभीरता से मंथन ही नहीं होता है।छात्र/छात्राओं को न तो समय पर पुस्तक उपलब्ध करा सकते हैं और न ही अन्य पोशाक,छात्रवृत्ति जैसी योजनाओं का ही लाभ दिया जा रहा है।
एक दिन में बिहार सरकार के विद्यालयों को दिल्ली पब्लिक स्कूल एवम् अन्य प्राइवेट स्कूलों की कतार में खड़ा करने प्रयास किया जा रहा है।ये बिहार में सरकारी विद्यालयों को दिब्यांग बच्चे को दौड़ाने की भांति प्रयास कर रहे हैं, शिक्षा विभाग के वरीय पदाधिकारी जैसे दिवा स्वप्न देख रहे हैं।सारी जवाबदेही और जिम्मेवारी, आर्थिक एवं मानसिक तथा सामाजिक रूप से कमजोर कर दिए गए शिक्षकों पर डाला जा रहा है। होना तो ये चाहिए था कि पहले सफलता का रोड़ मैप तैयार किया जाता तथा तब उसमें शिक्षकों की सकारात्मक भागीदारी के लिए उन्हें मानसिक, आर्थिक एवम् सामाजिक रूप से सबलता प्रदान किया जाना चाहिए।सिर्फ शिक्षकों को मानसिक और आर्थिक रूप से परेशान कर शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक सुधार नहीं लाया जा सकता।
शिक्षा के अधिकार अधिनियम एवं पूरे बिहार के सभी जिलों के विद्यालयों में एक समान अवकाश की अवधारणा पर दिसंबर 2022 में ही शिक्षा निदेशालय ने अवकाश तालिका घोषित किया था जो वर्तमान में भी लागू था।शिक्षकों से शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत 220दिनों से आज भी ज्यादा कार्य लिया जा रहा है फिर भी शिक्षकों के वार्षिक अवकाश में कटौती क्यों?क्या शिक्षा विभाग एवं बिहार सरकार, राज्य में शिक्षकों को आंदोलन करने को बाध्य कर शिक्षा व्यवस्था में अराजकता की स्थिति पैदा करना चाहती है।
बिहार सरकार द्वारा महिला उत्थान की बात की जाती है ,शिक्षा के क्षेत्र में 50%से ज्यादा महिला शिक्षिकाएं तथा 90% मध्याह्न भोजन योजना में रसोइया कार्यरत हैं ।ये अपने बच्चों के लिए जीवित पुत्रिका तथा अपने पतियों के लिए हरि तालिका तीज का निर्जला व्रत करती हैं,सनातनियों के लिए दीपावली, छठ और दुर्गापूजा सबसे महत्वपूर्ण त्योहार हैं,साथ ही श्री कृष्ण जन्माष्टमी जैसे जन जन के त्योहार की छुट्टियां अचानक अकारण संशोधित करते हुए कम या समाप्त कर दिए गए।ये सीधे सीधे शिक्षकों के अधिकारों,उनकी आस्था और अस्मिता पर हमला है।हम सभी शिक्षक सरकार के इस तुगलकी आदेश की भर्त्सना करते हैं और मांग करते हैं कि तत्काल प्रभाव से अवकाश संशोधन का आदेश वापस लेते हुए पूर्व के अवकाश तालिका को बहाल किया जाय।अन्यथा हम सभी विद्यालय से बाहर निकल कर सड़क पर आंदोलन के लिए बाध्य होंगे जिससे शिक्षण संस्थानों पर तथा शिक्षा व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा तथा इसकी सारी जवाबदेही बिहार सरकार एवम् शिक्षा विभाग की होगी।